click here

Tuesday, February 8, 2011

माया की माया ........


माया की माया ........

आज सुबह जैसे रोज की तरह मै बिस्तर से उठा और अपनी नियमीत दिनचर्या के अनुसार बाहर निकल कर किसी तरह अखबारों का एक छोटा सा बण्डल जो प्रतिदिन मेरे घर के सामने बिखरा हुआ पड़ा था उठा कर अन्दर लाया वैसे ये कम मै रोज करता हूँ और इस टाइम मै आधा सोया और आधा जगा हुआ होता हूँ और पूरा तभी जग पाता हूँ जब मेरी पत्नी मुझे चाय का कप देती है पर आज ऐसा नहीं हुआ मेरी नीद अचानक गायब गायब हो गयी ....... और मुझे रामायण का वो प्रसंग याद आ गया की भगवान् राम के पैर का अंगूठा किस तरह अहिल्या की पत्थर की मूर्ति पर पड़ा और किस तरह से वो पत्थर की मूर्ति बदल कर पत्थर से सुन्दर नारी बन गयी .... जब किस तरह भगवानराम जब अपने राजमहल से निकले अपना राजसी परिधान निकल कर जब वो तपस्वी वेश में नंगे पैर अपने महल से बाहर निकले और जब उनके कोमल पैर जमीन और धरती पर उगे घास फूस के संपर्क में आते, वैसे ही उस जमीन और घास फूश के स्वरूप बदलने लगे थे कटीली झाड़ियो से सुन्दर फूल खिलने लगे ये सब कहा जाता है की भगवान राम की माया थी .....वो भगवान् थे वो कर सकते थे ये सब उनके बस में रहा होगा तभी इसका वर्णन रामायण में मिलता है ....पर आज जैसे ही मेरी नजर अख़बार के उस हेड लाइन पर पड़ी मुझे यकीन हो गया ....ऐसे चमत्कार आज भी हो रहे है पर हम देख नही पा रहे है वो भगवान् की माया से हुआ था और यहाँ हमारे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की माया रोज के रोज ऐसे चमत्कार करती जा रही है उनके चरण कमल जहा पड़ते है वहा का स्वरूप बदल जाता है ... आप सोच रहे होंगे की अचानक मै रामायण के प्रसंग क्यों बताने लगा , दरसल बात ही कुछ ऐसी है ....आप सोच भी रहे होंगे की आखिर अखबार में ऐसा क्या था दरसल अखबार की हेड लाइन थी ॥" शहीद स्मारक धरना प्रदर्सन से आजाद " दरसल पहले सरकार ने धरना प्रदर्सन करने के लिए विधानसभा के सामने पड़ा खली स्थल निर्धारीत किया था । पर इस धरना स्थल पर सूबे की की मुख्यमंत्री माया की माया क असर हुआ और इसे यहाँ से हटा कर सहीद स्मारक पर कर दिया गया नाम से ही आप समझ सकते है लखनऊ का सहीद स्मारक जहा आने के बाद लोग देशभक्ति जैसे जज्ज्बे को महसूस करते थे यहाँ के चारो तरफ खिले हुए फूल और सहीद श्मारक लोगो को शहीदों की याद दिलाते थे ..........यहाँ पर माया की माया क असर हुआ और शहीदों के याद मे बने इस स्मारक पर रोज जिंदाबाद और मुर्दाबाद के नारे लगाये जाने लगे ..... कभी कभार तो प्रदर्सन करियो पर लाठिया भी बरसाई जाती रही ऐसा नहीं है की यहाँ धरना स्थल बनाये जाने क विरोध नहीं हुआ ,यहाँ से धरना स्थल हटाये जाने के लिए भी धरने दिए गए काफी हो हंगामा भी हुआ पर माया की देवी मायावती पर कोई असर नहीं हुआ ... यह की फुलवरिया पान की पीको और सिगरेट के तोतो से भर गयी ...पर धरना स्थल को वहा से हटाया न जा सका .....पर एकाएक ये सुनकर की बिना किसी आन्दोलन या प्रदर्सन के सर्कार ने धरना स्थल को हटा कर कही और कर दिया ये बात मुझे समझ मे नहीं आई पर आगे की लाइन पड़ने के बाद मुझे समज मे आया की आखिर ऐसा क्यों हुआ दरसल आगामी ३० जनवरी को शहीद दिवस को उतर प्रदेश की मुखिया सुश्री मायावती वहा होने वाले सर्वधर्म सभा मे बतौर अतिथि मौजूद रहेंगी ........और उनके पैर वहा पड़ने से पहले ही वहा का कायाकल्प होना सुरु हो गया है .......तो आप बताइए लाख चीखने चिल्लाने और शोर मचने से जो काम नहीं हो पाया वो हुआ की नहीं माया की माया से .... अगर इसी तरह से वो अपना पैर उत्तर प्रदेश के अन्य ऐतिहशिक स्थलों पर रखने लगे to आप मानेंगे की नहीं की वहा उनकी माया से सब बदल जायेगा
मनीष kumar पाण्डेय

पत्रकारिता में बदलाव: कल, आज और कल




इतिहास गवाह है की मनुष्यों का भाग्य बदल देने वाली लड़ाइयो बन्दुखो और तोपों ने उतना गोला बारूद नहीं उगले जितने की कालमो ने शब्द उगले है
जंगे आजादी की लड़ाई में जो काम हमारे क्रांतिकारियों की बन्दुखो से निकली गोलिया नहीं कर पाई वो काम कालमो से निकले शब्दों ने किया है
चाहे वो आजादी का लम्बा संघर्ष हो रास्ट्र निर्माण सभी में मिडिया का अतुलनीय योगदान रहा है
भारतीय मिडिया अभी ताकि अपने तीन दौरों से गुजर चुकी है आजादी के संघर्ष के दौरान आम जनमानस में लोगो की जनजाग्रति की वाहक
बनी, आजादी के बाद देश के नवनिर्माण में अपना योगदान दिया ,और आपात कल में लोकतंत्र की प्रहरी बनी पर आज मीडिया अपने व्यावसायिकता
के चौथे दौर से गुजर रही है आज पत्रकारिता के लिए सबसे बड़ी चुनौती का दौर है और वो चुनौती है आम लोगो के बीच अपनी विस्वसनीयता
को बनाये रखना
भारतीय मीडिया का पहला दूसरा और तीसरा दौर कफ्ही सराहनीय रहा है लेकिन वर्तमान में मीडिया की स्थिति अपनी वास्तविकता से दूर होती
जा रही है कभी मीडिया का नाम आते ही लोगो के जहाँ में क्रांति, विस्फोट, तख्तापलट, परिवर्तन, जागरूकता जैसे सब्द लोगो के जहाँ में आने
लगते थे आज मीडिया में स्टिंग आपरेसन, पेड़ न्यूज़ , टी आर पी, जैसे शब्द जुड़ गए है आज की मीडिया का रूप मिशन से बदल कर प्रोफेसन हो
गया है राजकीय संस्थानों से मीडिया समूहों से बड़ी नजदीकिया, स्टिंग आपरेसन के सच, ब्रेकिंग न्यूज़ के पीछे छिपे सच किसी से छुपे नहीं रह
गए है पैसा कमाने की होड़ मी पत्रकारों और मीडिया घरानों के बीच बढती गलाकाट प्रतिस्पर्धा, न्यूज़ वैल्यू के नाम पर नंगापन परोसने की प्रवीत्ति
से भी आज लोग अनजान नहीं है. इसलिए जनता का विश्वास धीरे धीरे मीडिया से उठता जा रहा है
आज मीडिया संस्थानों में संपादको से ज्यादा जलवे विज्ञापन व्यस्थापको के होते है उदारीकरण के बाद समाचारों के बाजारीकरण को आसानी से समझा
जा सकता है लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली पत्रकारिता आज अपना ही आस्तित्व अपने ही लोगो के बीच तलासने में लगी हुई है लेकिन आज
का सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है की आखिर मीडिया के गिरते हुए स्तर को कैसे बचाया जाये ये सवाल हमें काफी मुस्किल में डाल देता है
जहा तक मै सोच पाता हूँ वो है की जब तक एक बार हम फिर इस प्रोफेसन को मिसन में ना बदल दे तबतक इसका उद्धार संभव नहीं है अगर आप मेरे विचार
से सहमत है या कोई अन्य विचार आपके जहन में है तो मुझे जरुर अवगत कराये और एक बार फिर पत्रकारिता को मिसन समझ कर सुरु करे यकीन माने
हमारी वर्तमान मीडिया निश्चीत रूप से अपने पाचवे दौर में प्रवेश करेगी जो हमारी आने वाली पीढियों के लिए आदर्श होगी
अगर आप के ये लेख अच्छा लगा हो तो आप अपनी राय आप मुझे जरुर भेजे
मनीष कुमार पाण्डेय
mani655106@gmail.com

पत्रकार बनाम पत्रकारिता


लोकतंत्र का चौथा खम्भा अर्थात मीडिया जिसे समाज के एक आईने के रूप में देखा जाता है ... काफी समय पहले पत्रकारों को समाज में काफी सम्मानजनक स्थान दिया जाता था
पत्रकार आपने कलम की रोसनाई से समाज का दर्पण खुद समाज के सामने प्रदर्सीत करते थे पत्रकारों का मुलभुत कर्तव्य एक स्वछ समाज के निर्माण में सहयोग करना होता था पत्रकारिता लोगो के लिए एक मिसन होती थी जिसे लोग पूरी ईमानदारी से अंजाम देते थे | पर आज समय के साथ साथ इसका भी स्वरूप काफी बदल गया है | आज इस मिसन में नब्बे प्रतिसत लोगो की सोच बदल गयी है, आज आज पत्रकारिता का मतलब बदल गया है | पत्रकार आज अपने कर्तव्यो का निर्वहन करना भूलते जा रहे है , पत्रकारिता के माध्यम से आज लोग समाज का नहीं वरन स्वयं का निर्माण करने में लगे हुए है ....... मेरा जब पहला लेख एक जब अख़बार में प्रकाशित हुआ तो उस समय मै काफी उत्साह में था मुझे लगा की मै आज नहीं तो कल जरुर एक ऐसे मुकाम तक पहुच जाऊंगा जहा पहुच कर मुझे अपने आप पर गर्व की अनुभूति होगी | मैंने अपना सफ़र उत्तर प्रदेश के छोटे से सहर गोरखपुर के छोटे से कस्बे सहजनवा से सुरु किया | मेरे सामने बहुत सी विपत्तिया आई पर मै उनसे जूझता हुआ उस छोटे से कस्बे से निकल कर कई पडावो से गुजरता हुआ प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुच गया यहाँ मै पूरी
ईमानदारी और निष्ठा से अपने मकसद को मिसन बनाकर कम करता रहा .. पर यहाँ आकर मुझे लगा की आज वाकई पत्रकारिता का रूप काफी बदल गया है ......... यहाँ पर पत्रकारों के बीच पत्रकार बनाम पत्रकारिता की जो प्रतिस्पर्धा चल रही है उससे मै अंजान था .. यहाँ पर ज्यादातर लोगो की सोच मुझसे नहीं मिलती है यहाँ लगभग कुछ लोगो को छोड़कर सभी पत्रकारिता को माध्यम बना कर सिर्फ अपना विकास करने में लगे हुए है पिछले दो सालो के अन्दर मै बस वही का वही हूँ क्योकि मै इसे अपना मिसन बना कर कम करा रहा हूँ पर मेरे बहुत से काबिल भाई आज काफी बड़े आदमी बन गए है, मेरे जानने वाले मेरे एक बड़े भाई के पास जब मै यहाँ आया तो कुछ नहीं था पर आज उनके पास न जाने कैसे लखनऊ सहर में करोडो की जयदात हो गयी और आज भी पत्रकारिता के माध्यम से वो अपना विकास करने में लगे हुए है ......... मेरे एक दुसरे भाई जो अक्सर मुझे रिपोर्टिंग के दौरान प्रदेश के किसी न किसी के बड़े नेता या मंत्री के साथ दिख जाते थे वो आज करोडपति बन बैठे ....आज वो पत्रकार के साथ साथ बहुत बड़े ठेकेदार भी है, उनके साथ तमाम छोटे बड़े ठेकेदारों का एक समूह भी है जो उनके द्वरा लिए गए कामो को अपने नाम से करवाता है, और कई कंपनियों के मालिक भी है लेकिन सबसे बड़ी बात ये है की ये सब होते हुए भी सबसे पहले वो पत्रकार है .... हलाकि मेरा कहना हो सकता है की गलत हो पर आप सोच सकते है की जब कोई दिन से लेकर रात तक सिर्फ अपने विकास में लगा हुआ है तो क्या जरुरत है उसे पत्रकारिता करने की वो क्या वो ईमानदारी से पत्रकारिता कर सकता है ? पर ऐसे लोगो से पत्रकारिता से कोई मतलब नहीं है भले ही वो पत्रकारिता को न समझे पर वो अपने आप को पत्रकार कहलवाना ज्यादा पसंद करते है |
सिर्फ ऐसे ये लोग नहीं है जिन्हें मै जनता हूँ ऐसे न जाने कितने लोग है जो आज भी हमारे बीच बिना किसी भेद भाव के है | हम और आप कभी उससे ये नहीं पूछते की की भईया आखिर वो कौन सा पारस पत्थर है जो आपको दिनों दीं अमीर और अमीर बानाता जा रहा है या ऐसी कौन सी जड़ी है जिसे सूंघते ही आप का हर काम कोई भी अधिकारी आसानी से कर देता है सबसे बड़ा प्रश्न ये है की आखिर ये लोग ऐसी कौन सी पत्रकारिता करते है .......... जाहिर सी बात है इन लोगो को पत्रकारिता से से कोइलेना देना नहीं है .... पर ये पत्रकार बने रहना चाहते है आज के समय में इसी तरह के लोग इस क्षेत्र में आने वाले लोगो के लिए आदर्श बनते जा रहे है क्या हम अपने आने वाली पीड़ियो को ऐसे ही आदर्श देंगे ....... ?
अगर आप को लगता है की आप ऐसे लोग हमारे आने वाली पीढियों के लिए आदर्श न बने तो अपने विचारो से हमें जरुर अवगत कराये ........शेष चर्चा अगले अंक में ....
मनीष कुमार पाण्डेय
लखनऊ
mani655106@gmail.com
click here

AIRTEL

click here