भारतीय राजनीती आज
भ्रष्टाचार के शीर्ष शिखर को प्राप्त कर चुकी है, यही कारण है की सभी
लोकतान्त्रिक मूल्यों को ताक में रख कर, पहले देश को लूटा, फिर लूट का माल
विदेशों में जमा किया, और जब इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद की गयी तो
देश में लोकतंत्र को अपमानित किया गया, इतनी बेशर्म सरकार जो कटघरे में
खड़े होकर न्यायधीश पर गुर्राती है! सभी देशवासी इस बात की समीक्षा खुद ही
कर लें की ऐसा कुकृत्य एक पैशाचिक मानसिकता की सरकार ही कर सकती है! आज आप
अब भी चुप रहोगे तो ठीक है पर हर रोज सुबह उठकर जब आप दर्पण देखें तो एक
बार देश में होने वाली बुराइयों और अन्याय को जरूर कौसें, सुना है अफ्रीका
का एक कबीला जिस पेढ़ को काटना चाहता है, उसको सामूहिक रूप से हर रोज कोसता
है, और पेढ़ मर जाता है फिर उस पेढ़ को काटकर अच्छा घर बनाया जाता है.
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