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Thursday, August 18, 2011
कुछ मुद्दे जिसपर गौर करे
पहला मुद्दा
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एक सैनिक
देश के लिए अपनी जान बिना शर्त दे देता है. यह भी नहीं सोचता की उसके बाद
उसके परिवार का क्या होगा. उसके शहीद होने पर १ लाख की आर्थिक मदद का
भरोसा दिलाती है सरकारी निति, पर सालों तक उस शहीद के घर वाले धक्के खाते
रहते है दफ्तरों के, सेना मुख्यालय और कमान तो तुरंत सभी कुछ निबटा देती
है पर, जब बात वो मदद देने की आती है तो उस शहीद की फाइल सरकारी दफ्तरों
की मेजों और अलमारियों में धुल और धक्के खाती है. वही अगर कोई आतंकी मारा
जाता है या पकड़ा जाता है सैनिक मुठभेड़ में तो उसकी गिरफ्तारी को सियासी
रंग दे कार वोट बटोरती है. साथ ही अगर आतंकी मरता है तो उलटे सेना के
सिपाही और अधिकारीयों को कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी और कोर्ट मार्शल तक झेलना
पड़ता है.
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दूसरा मुद्दा
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लाखों
टन अनाज सड़ता रहता है बारिश में, सरकार तब भी अपनी तिजोरी भरती है. गरीब
और कुपोषित लोग भुखमरी से मरते रहते है. अनाज और दो जून की रोटी तो दूर,
सर ढकने के लिए छत भी नहीं होता है उनके पास. सरकार अनाज तो सड़ा कर बर्बाद
कर सकती है पर, भूखों का पेट नहीं भर सकती. वही दूसरी तरफ कसाब और गुरु
जैसे आतंकी देश को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, और भावनात्मक हानी पहुंचा रहे
है और हमारी कर्तव्यहीन सरकार उन्हें प्रतिदिन पेट भर भोजन और सभी
सहुल्तों के साथ सुरक्षा प्रदान कर रही है.
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तीसरा मुद्दा
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गाँधी ने कहा था भारत गावों में बसता है, सरकार गाँव उजाड़ कर शहर पर शहर बसा रही है.
और
से बात सिर्फ शहर बसने तक ही सिमित नहीं है, इन शहरों को बसने के लिए ये
गाँव तो उजड़ते ही है, पर साथ ही उन परिवारों को बेघर और रोज़गारहीन कर देते
है जों उन गाँव में रहते है. अगर कोई इंसान उस गाँव में रसूखदार है और
सोने पे सुहागा अगर किसी पार्टी का प्रतिनिधि या मेम्बर है और भगवन न करे
किसी रूलिंग पार्टी का नेता है या किसी नेता का रिश्तेदार है तो पुरे गाँव
को दरकिनार कर सारा फायदा उस एक इंसान को पहुंचती है.
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चौथा मुद्दा
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स्कूल,
कॉलेज और युनिवस्ती के नाम पर, ये विदेशी शिक्षा और विदेशी organisation
जों भारत में अपने शैक्षणिक संस्थान खोलने के लाइसेंस और परमिट देते जा
रही है वही. भारतीय शिक्षा संस्थानों का स्तर निचा करते हुए, और standard
के नाम पर मोटी तगड़ी फीस वसूलते हुए, उन छात्रों को शिक्षा से सीधे सीधे
वंचित कर रही है जों की प्रतिभा रखते है पर केवल इस लिए नहीं पढ़ सकते की
वो उन संस्थानों की मोटी फीस नहीं चूका सकते. देश में शिक्षा लोन देने की
बात तो सरकार करती है, पर जब ऐसे छात्रों को शिक्षा लोन देने की बात आती
है तो हर बैंक कुछ न कुछ सिक्यूरिटी चाहता है. इसपर भी सरकार का ही
नियंत्रण है. कई विश्वविद्यालयों में आर्थिक और शैक्षणिक घोटालों और
शिक्षा के निम्न स्तर के चलते उनका वार्षिक परिणाम २३% से ३२% के बिच ही
बना हुआ है उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. सरकार सिर्फ पैसे वसूलती है
और खामोश हो जाती है. आई . आई. एम् जैसे संस्थानों की फीस १६ लाख से २०
लाख के बिच है, इन छात्रों न फीस में छूट मिलती है न सरकारी सब्सिडी.
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पांचवा मुद्दा
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भारत
की शल्य चिकित्सा और आयुरवेदिक चिकित्सा अब पूरा विश्व अपना रहा है और
भारतीय डॉक्टर अपनी प्रतिभा से पुरे विश्व में अपना लोहा मनवा चुके है, पर
अपने देश में ही डॉक्टरों की कमी है, अस्पतालों की कमी है, बिस्तरों की
कमी है. AIIMS, MANIPAL, AMITY, LPU, BHU, BVP और JIPMER जैसे संस्थानों
से डॉक्टर तो खूब निकल रहे है पर उनपर सरकार ऐसा कोई भी कानून नहीं लगाती
की, MBBS की पढाई करने के तत्पश्चात जब वो उच्च शिक्षा के लिए चाहे कही भी
जाये, उनकी MBBS की डिग्री तभी मान्य होगी जब वो उच्च शिक्षा के पश्चात
देश में लौट कर देश में ही अपनी चिकित्सा सेवाएं दे. ५ साल की सेवा के
पश्चात वो कही भी जा कर अपनी सेवाएं दे सकते है. देश में न तो मेडिकल
कॉलेज बढ़ रहे है और न ही डॉक्टर. जों भी है वो उच्चकोटि की भारतीय शिक्षा
के बाद देश छोड़ कर विदेशों में जाकर रह रहे है.
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छठा मुद्दा
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सरकार
इंजिनियर भी खूब बना रही है, देश में करीब हर वर्ष ४ लाख इंजिनियर, स्नातक
होते है पर, केवल नौकरी के आभाव में और विदेशों की चकाचौंध में देश छोड़
रहे है. वही दूसरी तरफ देश में कई तकनीकी विभागों में कर्मचारी अपनी पेंशन
की उम्र में रिटायर हो रहे है पर, उनकी रिक्त जगह भरने के लिए सरकार के
पास वक्त नहीं है. यही हाल सेना और सुरक्षा विभागों का है. सेना में ही
करीब लगभग ७०,००० अफसर रैंक, ३,७५,००० अन्य रैंक रिक्त है. जिनको भरने के
लिए सरकार के पास वक्त नहीं है, हाँ पर घोटालों ले लिए सरकार सरकारी समय
के आलावा अतिरिक्त समय जरूर निकाल लेती है.
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सातवा मुद्दा
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भारत
देश की अर्थ व्यवस्था को सरकार पुरे विश्व में सबसे मजबूत बताती है, इसके
हमे भी किसी प्रकार का शक नहीं है, परन्तु सरकार ने अपनी विदेशी निवेश
निति की तहत विदेशी कम्पनियों की निवेश सीमा करीब ३०%, पुरे भारतीय शेयर
बाज़ार का निवेश अंश प्रदान किया है. जब जब किसी देश में आर्थिक संकट आता
है तो वो देश अपना पूरा विदेशी निवेश भारतीय बाज़ारों से खिंच लेता है,
देखते देखते अन्य देश भी वही करते है और उस कारण हमारी अर्थव्यवस्था
चरमराने लगती है, फिर भी सरकार झूठे आश्वाशन देती है और कहती है की हम हर
तरह से सक्षम है इस दबाव को सहने के लिए. जिसके कारण भारतीय निवेशक
आत्महत्या तक के कगार पर कई बार पहुँच चुके है.
डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया का सच
कुछ बुद्धिहीन लिखते है कि हिंदू शब्द की उत्पत्ति
१७ वीं शताब्दी में हुई है. उदहारण के रूप में नेहरू कि डिस्कवरी ऑफ़
इंडिया का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. नेहरू की वह पुस्तक नेहरू की तरह
झूंठ का पुलिंदा है.
हिंदू शब्द भारतीय विद्दवानो के
अनुसार कम से कम ४००० वर्ष पुराना है. शब्द कल्पद्रुम : जो कि लगभग दूसरी
शताब्दी में रचित है, में मन्त्र है.............
"हीनं दुष्यति इतिहिंदू जाती विशेष:" (अर्थात हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिंदू कहते है.)
इसी प्रकार अदभुत कोष में मन्त्र आता है ......
"हिंदू:
हिन्दुश्च प्रसिद्धौ दुशतानाम च विघर्षने". (अर्थात हिंदू और हिंदु दोनों
शब्द दुष्टों को नष्ट करने वाले अर्थ में प्रसिद्द है.)
वृद्ध स्म्रति (छठी शताब्दी)में मन्त्र है,...........................
"हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर:
वेद्.........हिंदु मुख शब्द भाक्। "
अर्थात जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुख मानने वाला है, वह हिंदु है।
ब्रहस्पति आगम (समय ज्ञात नही) में श्लोक है,................................
"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं, तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत."
(अर्थात हिमालय पर्वत से लेकर इंदु(हिंद) महासागर तक देव पुरुषों द्बारा निर्मित इस छेत्र को हिन्दुस्थान कहते है.)
पारसी
समाज के एक अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ में लिखा है कि, "अक्नुम बिरह्मने
व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त" (अर्थात व्यास नमक एक
ब्र्हामन हिंद से आया जिसके बराबर कोई अक्लमंद नही था.)
इस्लाम के
पैगेम्बर मोहम्मद साहब से भी १७०० वर्ष पुर्व लबि बिन अख्ताब बिना तुर्फा
नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए, उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा
है,............................
"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे.
व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं..
(अर्थात हे हिंद कि पुन्य भूमि! तू धन्य है,क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझे चुना है.)
१० वीं शताब्दी के महाकवि वेन .....अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं.
महाकवि चन्द्र बरदाई....................जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम.
जैसे
हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है की हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना
है. इन हजारों तथ्यों के अलावा भी लाखों तथ्य इस्लाम के लूटेरों ने
तक्षशिला व नालंदा जैसे विश्व -विद्यालयों को नष्ट करके समाप्त कर दिए.
इसलिए
मेरा आप सब से अनुरोध है कि किसी अध्यनहीन व बुद्धिहीन व्यक्ति की
ग़लत जानकारी को सच न माने. हिंदू धर्म की बुराई करो और अपने को हिंदू
कहो, ऐसा करने से कोई हिंदू नही बन जाता. जो लोग जवाहर लाल नेहरु को
इतिहासकार मानते हैं, उनकी बुद्धि पर तरस आता है. वह प्रसिद्ध, चतुर
राजनेता थे
युग परिवर्तन का भार युवाओं के कंधे पर
रहा है. इस समय हमारा देश बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है. एक तरफ
राष्ट्रविरोधी ताकते लगातार षड़यंत्र कर रही है दूसरी तरफ ये भ्रष्टाचारी
नेता देश की जड़ो को खोखला कर रहे है. देश का पैसा विदेशों में भेजा जा रहा
है और व्यक्तिगत फायदे के लिए देशहित को गिरवी रखा जा रहा है. दूसरी तरफ
अल्पसंख्यक आरंक्षण और सांप्रदायिक कानून के रूप में वोट बैंक पक्का करने
के चक्कर में एक भयानक खतरे को पैदा करने की कोशिश हो रही है. एक और
बिभाजन की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. ऐसे समय में युवाओ का दायित्व है की
देश की रक्षा हेतु आगे बढकर इन देशद्रोहियों का भयानक विरोध करे. यही समय
की पुकार है. आपने भारत महान की रक्षा करो दोस्तों....
अकारण बहस और कीचड़ उछालने से सदैव बचे
नाक थे जिससे वो साधारण व्यक्तियों जैसा व्यवहार करता था | और लोग समझ भी
नहीं पाते की वो नेत्रहीन है और उसे ऐसा करते रहने में बहुत मजा आता था |
एक दिन उसका रेलवे स्टेशन जाना हुआ ,यहाँ भी वो बिना चश्मे पहने हाथ में
मोबाइल लिए गया... और वह घड़ी देखने और ट्रेन के लेट होने का दिखावा करते
हुए वही एक बैंच में बैठ गया तथा मोबाइल निकल के जोर - जोर से बात करने
लगा | उसके सीध में एक और आदमी उसके आने के पहले से बैठा था और वो भी
मोबाइल से बात कर रहा था , उसे नेत्रहीन व्यक्ति की हरकते अच्छी नहीं लगी
और वो नेत्रहीन व्यक्ति के पास आ कर बहस करने लगा ... कहने लगा की आप मेरा
मजाक उड़ा रहे है | नेत्रहीन व्यक्ति को अपनी चोरी पकड़े जाने का डर था
इसलिए वो सॉरी बोलने के बजाय तर्क-वितर्क करने लगा ....बात इतनी बड़ी की
दोनों के बीच हाथा-पाई की नोबत आ गई तो पुलिस ने बीच बचाव किया और दोनों
को गिरफ्तार कर लिया | जब पुलिस ने पूछ-ताछ की तो नेत्रहीन व्यक्ति ने
बताया की मैं नेत्रहीन हूँ...पुलिस वाले हैरान हो गये और दुसरे ने बताया
की मैंगूंगा हूँ और लोग के होंठ को पढ़ता हूँ | पुलिस वालो ने ये निष्कर्ष
निकला की लड़ाई की मुख्य वजह दोनों का असाधारण व्यवहार था , जिसके कारण वो
आपस में भीड़ गये .......और उन्होंने दोनों को चेतावनी देकर छोड़ दिया |
इसलिए कहते है अकारण बहस और कीचड़ उछालने से सदैव बचे क्योंकि कुछ छिटे आप
पर भी आ सकती है ....
सिपाही अख्तियार ने लिखी पुलिस भ्रष्टाचार पर किताब
सिपाही अख्तियार सिंह ने पुलिस में भर्ती के समय कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी की कसम खाई, लेकिन उप्र पुलिस के इस सिपाही ने यह कसम तो ले ली लेकिन तैनाती के बाद हकीकत के पर्दे पर पहला शार्ट देखा तो वर्दी वालों की हकीकत से रूबरू हुए। अख्तियार अपने मकसद से नहीं डिगे। उन्हें 28 साल की नौकरी में कोई पदोन्नति नहीं मिली है। हां, तीन बार बर्खास्तगी के लिए नोटिस जरूर मिल चुके हैं। पुलिस के भ्रष्टाचार पर एक किताब लिख चुके हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सारथी अख्तियार सिंह यूपी पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात है। वह पिछले दो सालों में आगरा बीहड़ के मंसुखपुरा थाने में तैनात हैं। मूल रूप से मैनपुरी के गांव नगला धरम के रहने वाले अख्तियार ने 1 जून 1983 को खाकी पहनी। उसी दिन कसम ले ली कि कुछ गलत नहीं होने देंगे। अख्तियार की असली जंग शाहजहांपुर के परोर थाने से शुरू हुई। थानाध्यक्ष ने शीशम के स्लीपर का ट्रक पकड़ा। इसे अपने घर में उतरवा दिया। मामला संदिग्ध देख उन्होंने इसकी शिकायत एसपी से कर दी। अधीनस्थ कांस्टेबिल के हौसले देख थानेदार ने पहले धमकाया। वह न झुके तो समझौते की कोशिशें शुरू कर दीं। इससे अख्तियार के हौसले बढ़े। उन्हें लगा कि सच्चे शब्दों में इतनी ताकत है कि इसके आगे सारे हथियार फेल हैं।
इसके बाद उन्होंने बदायूं में जो किया दिखाया, वह और भी काबिले तारीफ था। वहां फलों से लदे आम के पेड़ों पर थानेदार की मिलीभगत से आरियां चल रही थीं। अख्तियार ने इसकी शिकायत एसपी तक से की, मगर थानेदार का कुछ नहीं हुआ। खुलेआम चल रहे इस खेल को रोकने के लिए एक दिन अख्तियार डीएम के सामने पेश हो गए। शिकायत पर आम के पेड़ बच गए। परंतु अख्तियार को जो फल मिले वह बहुत खट्टे थे। उन्हें लाइन हाजिर कर दिया गया। सन् 1998 में एक गोपनीय शिकायत पर उनका गोरखपुर जीआरपी में तबादला कर दिया गया। वहां भी उनकी सच्चाई का कारवां रुका नहीं। वहां के गोरखधंधों की खबर लेकर एडीजी के पास पहुंच गए। यहां भी अनुभव विष भरे थे। गोरखधंधा तो नहीं रुका। साथ ही कह दिया गया कि तुम यहां गलत आ गए हो। जिले में जाओ और आगरा भेज दिया गया।
यहां भी कहानी वही हुई। अपनों से लड़ते अख्तियार सिंह की एसएसपी से लेकर दूसरे अधिकारियों ने हौसला अफजाई तो की, मगर तैनाती दी गई जिला अपराध नियंत्रण कक्ष में। एक बार तो एसओ से मोर्चा खुल गया। बाद में उन्हें मनसुखपुरा भेज दिया गया। इस थाने की सच्चाई यह है कि यहां अक्सर सांप और बिच्छू निकलते हैं। बिजली है नहीं और जिला मुख्यालय आने के लिए एक दुर्गम रास्ता तय करना पड़ता है। परंतु इसके बावजूद अख्तियार डिगे नहीं हैं। वह कहते हैं कि जो न्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ रास्ता अख्तियार किया है, वह कभी नहीं छोड़ेंगे।
एक अनशन ने छुड़ाए थे अफसरों के पसीने
अनुशासित महकमे का जवान अख्तियार एक बार तो न्याय की लड़ाई के लिए 18 फरवरी 2003 को कलक्ट्रेट में धरने पर बैठ गया। मांग थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी शिकायत सबूत के बाद भी नहीं सुनीं जाती। या तो न्याय दो या बर्खास्त कर दो। सिपाही के अनशन की खबर ने लखनऊ में बैठे अफसरान को हिला दिया। बाद में अख्तियार की जीत हुई।
56 पन्नों में लिखी खाकी की हकीकत
आठ बार लाइन हाजिर और तीन बार बर्खास्तगी का नोटिस झेल चुके बीए पास अख्तियार सिंह ने वर्ष 2000 में 56 पन्नों की किताब अपराध का उत्थान और पतन में जो खुलासे किए, वह पुलिस के लिए करंट देने से कम नहीं है। इस किताब को लिखने के लिए अख्तियार सिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी से पहले अनुमति भी ली थी।
Wednesday, August 17, 2011
"Resist not evil"
In reading the Bhagavad-Gita, many of you in Western countries may have felt astonished at the second chapter, wherein Sri Krishna calls Arjuna a hypocrite and a coward because of his refusal to fight, or offer resistance, on account of his adversaries being his friends and relatives, making the plea that non-resistance was the highest ideal of love. This is a great lesson for us all to learn, that in all matters the two extremes are alike. The extreme positive and the extreme negative are always similar. When the vibrations of light are too slow, we do not see them, nor do we see them when they are too rapid. So with sound; when very low in pitch, we do not hear it; when very high, we do not hear it either. Of like nature is the difference between resistance and nonresistance. One man does not resist because he is weak, lazy, and cannot, not because he will not; the other man knows that he can strike an irresistible blow if he likes; yet he not only does not strike, but blesses his enemies. The one who from weakness resists not commits a sin, and as such cannot receive any benefit from the non-resistance; while the other would commit a sin by offering resistance. Buddha gave up his throne and renounced his position, that was true renunciation; but there cannot be any question of renunciation in the case of a beggar who has nothing to renounce. So we must always be careful about what we really mean when we speak of this non-resistance and ideal love. We must first take care to understand whether we have the power of resistance or not. Then, having the power, if we renounce it and do not resist, we are doing a grand act of love; but if we cannot resist, and yet, at the same time, try to deceive ourselves into the belief that we are actuated by motives of the highest love, we are doing the exact opposite. Arjuna became a coward at the sight of the mighty array against him; his "love" makes him forget his duty towards his country and king. That is why Sri Krishna told him that he was a hypocrite; Thou talkest like a wise man, but thy actions betray thee to be a coward; therefore stand up and fight!
Tuesday, August 16, 2011
’’अन्ना’’ केहि विधि जीतहॅु रिपु बलवाना
विष-अमृत व जीवन-मृत्यु के बीच अनवरत संघर्ष होता आया है। आज भी हो रहा
है। देश काल परिस्थिति के अनुसार पात्र बदल जाते हैं परन्तु परिणाम कभी
नहीं बदलता वह अटूट, अटल व अडिग होता है। सत्य की जीत सदा हुई है और सदा
होगी यह उद्घोष स्वयं परमात्मा श्री कृष्ण ने अपने मुखारबिन्द से अपने
अन्नन्य भक्त अर्जुन को महाभारत के धर्म युद्ध में बताते हुए कहा कि
’’यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत-अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं
सृजाम्यहम-परित्राणाम साधूनां विनाशयच दुष्कृताम्-धर्म संस्थापनार्याय
सम्भवमि युगे युगे’’ अर्थात हे भारत जब जब धर्म की हानि और अधर्म की
वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हॅू अर्थात साकार रूप से
लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूूॅं। साधु पुरूषों की उद्धार करने के लिए
पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से
स्थापना करने के लिए युग-युग में प्रकट हुआ करता हॅू। अतः सत्य की, धर्म
की, न्याय की लड़ाई लड़ने वालों की विजय मेरे आशीर्वाद से होती है। आज
राष्ट्रप्रेम अन्ना के रूप में शरीर धारण करके हमारे सामने आया है वहीं
राष्ट्र की साख को रसातल में पहुंचाने वाली कांग्रेसी सत्ता (यूपीए-2) की
सरकार देश की दुश्मन बनकर सामने आई है। वर्तमान सत्ता भ्रष्टाचार, काला
धन, महंगाई, अपराध व आतंक को संरक्षण देने तथा देशप्रेमियों का लांछित
करते-करते स्वयं के ही बुने मकड़जाल में फंस चुकी है। सुशासन हेतु नाना
रूप से जंग छिड़ चुकी है। देशप्रेमी अन्ना और देश को धोखे में रखने वाली
सरकार के मध्य भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने
वाले प्राविधान जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल के मध्य जंग जारी है। एक ओर
आजाद भारत के इतिहास की सबसे महाभ्रष्ट सरकार है दूसरी ओर स्वामी
विवेकानंद और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित सहज, सरल, सौम्य अन्ना
हजारे हैं। अन्ना की न कोई पार्टी है न ही वह किसी बड़े घराने से तालूक
रखने वाले और न ही किसी पार्टी का सहयोग मॉंग कर अपना आंदोलन चला रहे
हैं। सरकार ने चार जून को काला धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने तथा
भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा मिले इस मांग को लेकर योग गुरू स्वामी रामदेव
उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण सहित उपस्थित तीस हजार निहत्थे महिला,
पुरूष, नौजवान, देशप्रेमियों को आधी रात को ऑसू गैस, लाठी डंडा चलाकर जो
दुस्साहस दिखाया और बाद में उसको प्रधानमंत्री सहित सभी ने जायज भी
ठहराया। स्वामी रामदेव के साथ केन्द्र सरकार ने पहले धोखा किया अब उनके
उत्पीड़न पर उतारू है। सरकार के मुंह खून लग चुका है वह अंहकार की भाषा
बोल रही है। 16 अगस्त को अन्ना ने जनलोकपाल को स्वीकार करने के लिए अनशन
करने का एलान किया हुआ है। सरकार उत्पीड़न पर उतारू है। अन्ना पर घटिया
आरोप लगाने का दौर प्रारम्भ कर दिया है आगे सरकार किस हद तक जाएगी कुछ
कहा नहीं जा सकता है। यह लड़ाई एक गांव के मन्दिर के 8 गुना 10 के छोटे से
कमरे में रहने वाले किशन राव बाबू (अन्ना हजारे)े तथा महलों में रहने
वाले, अकूत सम्पत्ति के मालिकों के मध्य छिड़ी है। आम देशवासी अन्ना हजारे
के साथ है। अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के कड़े कानून को लेकर नई दिल्ली के
चॉंदनी चौक लोकसभा क्षेत्र तथा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के अमेठी
संसदीय क्षेत्र में जो सर्वे हुआ उसमें 99प्रतिशत लोगों ने अन्ना के
जनलोकपाल का समर्थन किया। यही सर्वे यदि पूरे भारत में कराया जाए तो
परिणाम अमेठी व चॉंदनी चौक जैसा ही आएगा। हम सभी देशवासी 74 वर्षीय अन्ना
के कठोर अनशन करने के कारण तथा सरकार की ओछी चालों से चिन्तित हैं।
त्रेता युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को सेना के रूप में
बानर, भालुओं तथा संसाधनों के बिना व रथ व कवच आदि से रहित देखकर विभीषण
चिन्नित हो उठा और प्रभु से कहने लगा उसको महान् सन्त परमपूज्य गोस्वामी
तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा कि हे नाथ ’’दसहु दिसि जय जयकार
करि निज निज जोरि जानी-भीर वीर इत रामहि उत रावनहि बखानी’’ ’’रावण रथी
बिरथ रघुवीरा-देखि विभीषण भयऊ अधीरा- अधिक प्रीति मन भा संदेहा- बंदि चरण
कह सहित सनेहा’’ ’’सुनहु सखा कह कृपानिधाना जेहि जय होहि सो स्यंदन आना’’
’सौरज धीरज जेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ ध्वजा पताका-बल विवेक दम परहित
घोड़े-क्षमा, कृपा, समता रजु जोड़े’ ’ईश भजनु सारथी सुजाना-बिरती चर्म
संतोष कृपाना-दान परसु बुद्धि शक्ति प्रचंडा-बर विग्यान कठिन को दंडा’
’अमल अचल मन त्रोन समाना-सम यम नियम सीलमुख नाना’ ’कवज अभेद बिप्र गुरू
पूजा-ऐहि सम विजय उपाय न दूजा’ ’सखा धर्ममय अस रथ जाके- जीतन कहं न कतहूं
रिपु ताके’ ’महाअजय संसार रिपुजीत सकइ सो वीर-जाके अस रथ होइ-दृढ सुनहु
सखा मतिधीर’ अर्थात दोनों ओर से योद्धा जय-जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी
चुनकर इधर श्रीरघुनाथ जी और उधर रावण का बखान करके भिड़ गए। रावण को रथ पर
और श्रीरघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने
से उनके मन में सन्देह हो गया कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत पाएंगे।
श्रीरामचन्द्र जी के चरणों की वन्दना करके वे स्नेहपूर्वक कहने लगे कि हे
नाथ आप न रथ पर हैं न तन की रक्षा के लिए कवच है और न ही पैरा में जूते
ही हैं। वह बलवान बीर रावण इस स्थिति में किसी प्रकार जीता जाएगा ?
कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी ने सखा को कहा कि जिससे जय होती है मित्र व
रथ दूसरा ही होता है। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये हैं। सत्य और सदाचार
उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है। बल, विवेक, दम (इन्द्रियों का वश में
होना) और परोपकार ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समतारूपी डोरी
से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी
है। बैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड
शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल पाप रहित और अचल (स्थिर)
मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना) (अहिंसादि) यम और नियम ये
बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरू का पूजन अभेद कवच हैं। इसके समान
विजय का दूसरा उपाय नहीं है। हे सखे ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो उसके लिए
जीतने को कहीं कोई शत्रु ही नही है। हे धीर बुद्धि वाले सखा सुनो जिसके
पास ऐसा दृढ़ रथ हो वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु)
रूपी महान ’’दुर्जय’’ शत्रु को भी जीत सकता है। रावण की तो बात ही क्या
है। भारत की सन्तान से नियति अपेक्षा कर रही है कि वह प्रवाह पतित न होकर
अपने पुरूषार्थ से अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा विश्व में प्रस्तापित
करेंगे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था यह देश अवश्य गिर गया है परन्तु
निश्चित फिर उठेगा ओर ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जाएगी। अन्ना के
श्रीचरणों में नमन करते हुए उनके लिए दो शब्द एक शेर के रूप में:-
अधिकार खोकर बैठे रहना यह बड़ा दुष्कर्म है।
न्याय के लिए अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।।
नरेन्द्र सिंह राणा
लेखक- उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
अन्ना से ज्यादा तो मुन्ना कारगर
१ - लगे हाथ अन्ना हजारे टीम उसी चांदनी चौक में यह जनमत संग्रह भी करा लें कि कितनी प्रतिशत जनता उन्हें अपना सिविल प्रतिनिधि मानती है | और हाँ , अब तो अन्ना को कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए | ##
२ - अन्ना जी , दस करोड़ क्यों लगेंगें आपके चुनाव में भला ? फिर अन्य में और आप में क्या अंतर रह जायगा ? और यदि आप जानते हैं हैं कि इतना पैसा लगता है , तो यह क्यों लगता है , इस प्रश्न पर आपने क्यों नहीं सोचा ? यदि इसी मुद्दे पर आप काम करते तो देश का कुछ पक्का काम हो जाता बनिस्बत उसके जो आप कार रहे हैं , या जो आपसे कराया जा रहा है | ##
३ - आप दस दिन बिना खाए रह सकते हैं तो क्या इस आधार पर कोई जिद करेंगें ? आप पांच लोग प्रधान मंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाना चाहते हैं , तो दस लोग मानते हैं कि ऐसा करना गलत होगा | फिर आप अनशन करके अपनी ही बात देश को मनवाने पर क्यों तुले हैं ? क्या यह जिद अनुचित नहीं है ? मामला संसद में है ,और आप संसद की तौहीन कर रहे हैं | दुःख है की आप जानते ही नहीं की आप क्या कर रहे हैं | आप लगातार अपनी समझ में नहीं ,दूसरों के उकसावे में हैं | तिस पर भी यदि आप जिद करते हैं तो आप ख़ुशी से जान दे दीजिये | यह देश के हित में ज्यादा होगा | आप ही नहीं , आपके साथ भीड़ भी नहीं समझती कि आप देश के लिए कितना घातक आन्दोलन कर रहे हैं जो लोकतंत्र के खिलाफ है , आज़ादी का नाशक है , और गुलामी का दिशा निर्देशक | उलटी बात यह है कि अभी आप और देश एश यह समझ रहा है कि आप आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं | जब संसद और संसद की गरिमा समाप्त हो जायगी ,और आप की पूँछ पर पाँव धरकर कोई बदमाश भारत का लोक - अध्यक्ष बन जायगा तब समझ में आएगा ,आपने कितना नुकसान किया देश का ! आप की टीम अलोकतांत्रिक अक्ल की है | और जो आप यह समझते हैं कि देश में केवल आप पांच ईमानदार हैं ,शेष सब बे ईमान , तो यह सोच गलत है | फिर भी यदि ऐसा है तो लोकतंत्र में तो बे ईमानों की ही चलेगी | यहाँ आपकी सात्विक तानाशाही नहीं चलेगी | गुस्ताखी मुआफ | ##
४ - इसे विडम्बना ही तो कहेंगे , या कोई छद्म किगाँधी के अनुयायी अब भगत सिंह , चन्द्र शेखर आज़ाद , सुभाष चन्द्र बोस बन ने की होड़ में हैं | ##
५ - एक शातिर दिमाग अरविन्द केजरीवाल को तो लगता है पक्का भ्रम हो गया है कि भारत के प्रथम जन लोक पाल वही बनेंगे , और वह देश से भ्रष्टाचार भगा देंगें | बड़ी मशक्कत कर रहा है बेचारा | अब इस महत्वाकांछा के आगे भला कलक्टरी की नौकरी कैसे पसंद आती ? ##
६ - पूछने पर श्रीमान जी कहते हैं की कितना समय लगा सरकार को अपने आरोपित मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही करने में | इसका श्रेय उन्होंने सरकार के बजाय सुप्रीम कोर्ट को दिया | वे सुप्रीम कोर्ट से ज़रा पूछें की उसके पास कितने मामले कितने दिनों से लंबित हैं ? ##
७ - लोकपाल भी कोई कार्यवाही तभी तो कर पायेगा जब उसके पास कोई सूचना , शिकायत पहुंचेगी ? यदि भ्रष्टाचारी ऐसा आपस में प्रबंधन कर लें कि सब काम अन्दर अन्दर हो जाय , जैसा अभी हो रहा है , और उन तक पौंचे ही नहीं | तो क्या कर लेगा लोकपाल भी , जैसा कि अभी ही लोकायुक्त एवं अन्य एजेंसियां नहीं कर पा रही हैं | ##
८ - देखने वालों ने देखा होगा कि 'लगे रहो मुन्ना भाई ' देश के मानस पर अन्ना के आन्दोलन से ज्यादा कारगर हुआ था | ##
९ - सभ्य समाज लोकतान्त्रिक सरकारों के खिलाफ साज़िश नहीं किया करते | ##
१० - निष्कर्ष = यदि यह मान लिया आय कि यह राजनीतिक भ्रष्टाचार का युग है | दूसरी ओर यह ध्यान दिया जाय कि दलितों की आर्थिक स्थिति सबसे ख़राब है | तो हमें समग्रतः यह जिद बनानी , अपनानी चाहिए अन्ना की तरह कि फिर अब तो हम केवल दलितों को ही राजनीतिक सत्ता में जाने देंगें | नेत्र बंद करके केवल दलित उम्मीदवार को ही वोट देकर विधायक -सांसद बनायेंगे जिस से यदि वे भ्रष्टाचार भी करे तो उनकी आर्थिक दशा सुधरे , और वे मोद पायें | है न उम्दा बात और बेहतरीन प्रस्ताव ? ##
भड़ास ब्लाग से साभार
Monday, August 15, 2011
धूर्ततापूर्ण दूरदर्शिता ; स्तरीय मुकाबला
वहा धूर्त और तुच्छ व्यक्ति भी योग्य व्यक्ति को सहन नहीं कर पाएंगे |
धूर्त व्यक्ति अपने ही बौद्धिक स्तर के व्यक्ति को ही नेतृत्व देना पसंद
करेंगे ; क्योकि अपने जैसो से ही तो मुकाबला किया जा सकता है और
उन्हें ही धक्का देकर आगे बड़ा जा सकता है ..................
Sunday, August 7, 2011
Karma effect on character
Saturday, August 6, 2011
What's this??? We should respect women.
Alright, this is not cool at all. A recent survey by Nielsen has revealed that Indian women are the most stressed out in the world: 87% of our women feel stressed out most of the time. This statistic alone has caused me to stress out. Even in workaholic America, only 53% women feel stressed.
What are we doing to our women? I'm biased, but Indian women are the most beautiful in the world. As mothers, sisters, daughters, colleagues, wives and girlfriends - we love them. Can you imagine life without the ladies?
It would be a universe full of messy, aggressive and ego-maniacal males running the world, trying to outdo each other for no particular reason. There would be body odor, socks on the floor and nothing in the fridge to eat. The entertainment industry would die. Who wants to watch movies without actresses?
नोएडा एक्सटेंशन का टेंशन
समझौते से असहमत किसान आज बादलपुर में महापंचायत करेंगे, जहां जिले के कई गाँवों के लोग पहुंचनेवाले हैं. नाराज किसानों का कहना है कि प्राधिकरण ने मुट्ठी भर किसानो की समिति बनाकर कर भले ही समझौता कर लिया है लेकिन जमीन उनकी है और वो किसी कीमत पर नहीं देंगे. किसानों को कोर्ट के फैसले का भी इंतजार है.
इस बीच, किसानों की जमीन का मुआवजा 850 रुपये से बढ़ाकर 1400 रुपये प्रति वर्ग मीटर किया जाएगा. इसी तरह विकसित जमीन में किसानों का हिस्सा 6 फीसदी से बढ़ाकर 8 फीसदी किया जा रहा है. आबादी वाली जमीन से अधिग्रहण भी हटाया जाएगा.
अथॉरिटी ने ये वादा भी किया है कि भूमिहीनों को 40 मीटर के प्लॉट दिए जाएंगे. उस जमीन पर खोले जानेवाले स्कूल-कॉलेजों में गरीब बच्चों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. अथॉरिटी ने गांव में स्पोर्ट्स सेंटर और आईटीआई खोलने का भी वादा किया है.
फर्जी डिग्री बेचने वाले पुलिस के गिरफ्त में
क्राइम ब्रांच के संयुक्त आयुक्त संदीप गोयल के मुताबिक पुलिस की टीम को सूचना मिली थी कि एक गिरोह जामिया की डिग्रियां ऊंचे दामों पर बेच रहा है। इसके बाद पुलिस ने सूर्या होटल के नजदीक घेराबंदी कर निमेश प्रूथो (२९), मार्टिन (३५), आतिफ (२८), रेहान खान (२६) और जितेन्द्र को गिरफ्तार कर लिया।
पकड़े गए रेहान और जितेन्द्र फर्जी डिग्री तैयार करते थे और ५० से ६० हजार रुपए में बेच दिया जाता था। पुलिस ने इनके कब्जे से विभिन्न कोर्स की दर्जनों डिग्रियां बरामद की हैं।
Friday, August 5, 2011
National Gurdwara may go under hammer
AMRITSAR: The National Gurdwara, Washington DC, situated close to the White House, may go under the hammer if its management fails to pay a loan of around US$ 2 million. To bail out the gurdwara from financial mess, the management in 2009 had offered Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee (SGPC) to take control of the gurdwara on payment of the loan. But till now the committee has not been able to dole out the required funds.
Gurmeet Singh Bedi, who had represented SGPC, told TOI over phone from Washington on Friday that the gurdwara, inaugurated in 2005, was constructed at a cost of around US$7 to 8 million. "Due to low turnout of devotees, the income of gurdwara is not enough to pay back the loan and so the management offered it to SGPC," he said.
The National Gurdwara website has also sought financial help to keep it running. 'We need your help, the National Gurdwara has been going through some financial problem', reads the posting on the website. Former SGPC secretary Joginder Singh Adliwal, who had visited the gurdwara in 2010, said, "It would be disgraceful for Sikhs if a gurdwara is auctioned," he said. Adliwal said that SGPC should transfer the funds to gurdwara and take over its control. SGPC secretary Dalmegh Singh revealed that there were some bureaucratic hassles in transferring the funds.
"Our chartered accountant had gone to Reserve Bank of India but the funds couldn't be transferred as yet," he said. Bedi said that if SGPC didn't give the required funds, the management could consider handing over the gurdwara to some other Sikh religious body. "But we won't let it be auctioned," he underlined.
मानसून सत्र में उपस्थित नहीं हो सकेंगे कलमाड़ी
उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने संसद के जारी मानसून सत्र में उपस्थित होने के लिए न्यायालय से अनुमति मांगी थी।
कलमाडी राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अनियिमितताओं के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद हैं।
न्यायाधीश राजीव सहाय इंदला ने कलमाडी की याचिका खारिज की और उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। जुर्माने की यह राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा होगी।
न्यायाधीश ने कहा, "कलमाडी को न्यायिक हिरासत में होते हुए संसद में उपस्थित होने की अनुमति देने पर उन्हें निश्चित रूप से जेल से राहत मिलेगी। जब उनके साथी कैदियों को ऐसी राहत नहीं दी जा रही है तो मैं उनके पक्ष में निर्णय देने का कोई कारण नहीं देखता।"
इसके पहले, सरकार ने कलमाडी के आवदेन का यह कहते विरोध किया था कि उनकी चिकित्सा रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्हें भूलने की समस्या है।
पाकिस्तान है दुनिया का दूसरा सबसे खतरनाक देश
दुनिया में आतंकवादी घटनाओं में 15 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है और पाकिस्तान विश्व में दूसरे नम्बर की सबसे खतरनाक देश है तथा भारत इस तालिका में 16 वें पायदान पर है।
ब्रिटेन की राजधानी लंदन स्थित 'मैपलक्रोफ्ट' नामक संगठन के जारी एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सोमालिया दुनिया का ऐसा देश है, जहां पर आतंकवादी हमला होने की सबसे ज्यादा संभावना है।
पाकिस्तान का नम्बर इसके बाद है और फिर इसमें इराक (3), अफगानिस्तान (4) और संसार के नक्शे पर हाल ही में उभरे दक्षिणी सूडान को रखा गया है। 'एक्सट्रीम रिस्क' नाम की इस सूची में गत पिछले साल भी टॉप चार देश यही थे।
इस सर्वेक्षण में अप्रैल 2010 से मार्च 2011 की घटनाओं को आधार बनाया गया है और जून 2009 से जून 2010 भी अवधि की कुछ घटनाओं को भी शामिल किया गया है।
इस सूची में यूरोपीय देशों में सबसे पहले यूनान को रखा गया है1 यूनान को 27 वां स्थान दिया गया जबकि वामहिंसा से जूझ रहे इस देश का स्थान पिछली सूची में 24वां था। कुल 198 देशों की इस तालिका में ब्रिटेन (38), फ्रांस 45. और नार्वे को 112 वां स्थान दिया गया है।
(वार्ता)
सर्वेक्षण में कहा गया है कि विश्व में पिछले साल की तुलना में 15 प्रतिशत की बढोतरी के साथ 11.954 आतंकवादी घटनाएं हुई है, जबकि इन हमलों में मरने वालों की संख्या सात प्रतिशत घटकर 14.478 हो गई है।
अब रेल टिकट आरक्षण घोटाला
नई दिल्ली। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कैग का कहना है की तत्काल टिकट आरक्षण प्रणाली बुकिंग क्लर्कों और एजेंटों के छलकपट की गिरफ्त में है, जिसकी वजह से यात्रियों को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन जरूरतमंद यात्रियों के लिए यह योजना दिसम्बर 1997 में शुरू की गई थी वे इसका लाभ आसानी से नहीं उठा पा रहे हैं क्योंकि यह छलकपट की गिरफ्त में आ गया है।
पीआरएस दिल्ली और अन्य पीआरएस स्थानों के इलेक्ट्रॉनिक आंकड़ों सहित अभिलेखों का अध्ययन करने से पता चला है कि बुकिंग शुरू होने के पहले चंद घंटों के दौरान बुकिंग क्लर्क के गुप्त सहयोग से रेलवे एजेंटों ने घपलेबाजी की और एक फार्म पर छह से अधिक यात्रियों के आरक्षण कराए गए। सामान्य श्रेणी के टिकटों का अग्रिम आरक्षण 90 दिन पहले कराया जा सकता हैं जबकि तत्काल श्रेणी में ट्रेन की रवानगी के दो दिन पहले आरक्षण होता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य उन यात्रियों को आरक्षण प्रदान करना था जो अपनी यात्रा की योजना पहले से नहीं बना पाते हैं। इस योजना का उद्देश्य केवल सीमित हद तक ही पूरा हो पाया है। रिपोर्ट में तत्काल योजना की समीक्षा का सुझाव दिया गया है और एक ऐसी नीति बनाने की सलाह दी गई है कि इसका लाभ उन जरूरतमंद यात्रियों को मिल सके जिनके लिए यह बनाई गई है।
रिपोर्ट में यात्री प्रतीक्षा सूची को पारदर्शी बनाने, शुरुआती घंटे के दौरान होने वाले तत्काल आरक्षण के मामलों में यात्री की पहचान आदि की जांच कर दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने, सर्वरों की क्षमता बढा़ने आरटीएसए और वेबसाइट एजेंटों द्वारा बुक कराई जाने वाले टिकटों की पहचान के लिए आरक्षण प्रणाली में अंकीकृत आईडी अनिवार्य करने की सिफारिश की गई है।
कैग ने आरटीएसए वेबसाइट एजेंटों के लेनदेने का निरीक्षण नियमित अंतराल पर करने के बाद ही उनके लाइसेंस का नवीनीकरण करने, आरटीएसए द्वारा खरीदे गए प्रतीक्षा सूची वाले टिकटों के बडी़ संख्या में रद्द कराए जाने की नियमित समीक्षा करने की भी सिफारिश की है।
Mila Wo Bhi Nahi Karte Mila Hum b nahi karte,
Wafa Wo b nahi karte, Wafa Hum b nahi karte,
Unhein Ruswai ka Dukh, Hamein Tanhai ka Darr,
Gila Wo b nahi karte, Shikwa Hum b nahi karte
Kisi Morr per Takrao ho jata hai aksar
Ruka Wo b nahi karte, Thera Hum b nahi karte
Jab b dekhte hain Unhein, Sochte hain kuch kahein unse
Suna Wo b nahi karte, Kaha Hum b nahi karte
Lekin! ye b Sach hai k Mohabbat Unhain b hai
Izhaar Wo b nahi karte, Kaha Hum b nahi karte
Thursday, August 4, 2011
शांत माता उग्र पिता
एक बार अकबर व् बीरबल जंगल मे आखेट हेतु जा रहे थ अपने लवाजमे के साथ. राह मे चलते चलते बीरबल को तुलसी का पोधा दिखता है, बीरबल घोड़े से उतर कर तुलसी माता को दंडवत प्रणाम करता है, ओर बोलता है जय
हो माताश्री की, जय हो माताश्री की. अकबर को बड़ा आश्चर्य होता है किहिन्दू धर्म भी कैसा है पेड़ पोधो को भगवान मानता है. इस बीच अकबर के चमचे हमेशा की तरह बीरबल को नीचा दिखने की सोचते है, ओर अकबर को भड़का देते है.
अकबर घोड़े से उतर कर तुलसी के पोधे को जड़ से उखड कर फेक देता है. (ये देखकर बीरबल सारी बात समझ जाता है कि अकबर केसे भड़का है.) आगे राह मे चलते चलते बीरबल फिर घोड़े से उतरकर एक पोधे को (जोकि बिच्छु बूटी का पोधा होता है) दंडवत प्रणाम करता है ओर जोर जोर से बोलता है जे हो पिताश्री की, जे हो पिताश्री की. अकबर घोड़े से उतर कर उस पोधे को भी जड़ से उखाड़ कर फेक देता है, उसी क्षण अकबर के हाथ मे खुजली शरू हो जाती है, वह जहाँ भी हाथ लगता है शरीर मे वहाँ - वहाँ खुजली शरू हो जाती है. अकबर कहता है बीरबल
मुझे बचाओ, मुझे बचाओ. बीरबल बड़े ही शांत स्वर मे अकबर को कहता है बादशाह सलामत आपकी खुजली उस तुलसी के पोधे पत्ते के रस को अपने शरीर पर लगाने से आपकी खुजली मिटेगी. अकबर दोड़कर तुलसी के पोधे के पास आकर उसके पत्ते के रस को अपने शरीर पर मलता है, ओर अकबर की खुजली शांत हो जाती है. अकबर
बीरबल से पूछता है ऐसा केसे हुआ, बीरबल ने कहा हमारे हिन्दुओ की माता बड़ी शांत स्वभाव की होती है पर पिता बड़े उग्र स्वभाव के होते है, अगर उन्हें
पता चलता है की किसी ने जान बुझ कर पंग लिया तो वो निबटना जानते है.
आज बैंको में कामकाज रहेगा बंद

सरकारी बैंको में आज बैंकिंग सेवाओं के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। इस सिलसिले में ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज़ एसोसिएशन के विश्वास उतागी का कहना है कि देशभर में दस लाख से अधिक बैंक कर्मी इस हड़ताल में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में बैंक सेवाओं पर इसका असर पड़ना लाजमी है। उन्होंने कहा कि हड़ताल के दौरान समाशोधन कार्यालय, विदेशी मुद्रा विभाग, कॉल मनी बाजार तथा रिजर्व बैंक के कार्यालय भी बंद रहेंगे।
यह भी कहा जा रहा है कि आज सरकारी बैंकों के एटीएम से भी पैसे निकालने में लोगों को दिक्कत आ सकती है। क्योंकि कर्मचारियों की कमी के चलते एटीएम मशीनों की री-फिलिंग में दिक्कत आ सकती है।
आपको बता दें कि बैंक कर्मचारी, बैंकिंग सेवाओं के निजीकरण तथा बैंकों के कामकाज की आउटसोर्सिंग का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही पेंशन तथा अधिकारियों के कामकाजी घंटों के नियमन के मामले को लेकर भी कर्मचारियों में असंतोष है।
आरक्षण से डर गयी मायावती

फिल्मकार प्रकाश झा की आने वाली फिल्म 'आरक्षण' के प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश कि राजधानी लखनऊ में एक कार्यक्रम आयोजित होना था लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अंतिम समय में इस कार्यक्रम पर रोक लगा दी । इस वजह से प्रकाश झा काफी परेशान और हतप्रभ हैं। उनका कहना है कि यदि लोगों को उनकी फिल्म से कोई परेशानी है तो उन्हें इस पर उनसे सीधे चर्चा करनी चाहिए।
झा ने एक वक्तव्य जारी कर कहा है, "मैं हतप्रभ हूं कि कार्यक्रम के लिए दी गई इजाजत अंतिम समय में रद्द कर दी गई। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि लोगों को मेरी फिल्म से किस तरह की परेशानी है। किसी ने फिल्म नहीं देखी है और यदि इसके बाद भी उन्हें फिल्म के प्रचार दृश्यों को लेकर कोई परेशानी है तो वे ये बात मेरे सामने क्यों नहीं उठाते।"
मेरे हालात .........|

रात ढलती गयी
श्याह होता रहा
याद में उन दिनों के
मै रोता रहा
अब तो कहने को कोई
न अपना रहा
अपनी पलकों को मै तो
भिगोता रहा
रात ढलती गयी ..............रोता रहा
मै गुनाहगार हूँ
लोग कहते है ये
पर हुआ क्या है मुझसे
बताये कोई
हर फकत हर घड़ी
अपनी तन्हाई को
मोतियों कि लड़ी में
पिरोता रहा
रात ढलती गयी..........रोता रहा |
सारा दुश्मन जमाना है
अब तो मेरा
हूँ लुटेरा ये मुझपर तो
इल्जाम है
मुझको इल्जाम देकर
वो खुश है बहुत
लोग हँसते रहे
और मै रोता रहा
रात ढलती गयी ..........रोता रहा |
मनीष पाण्डेय
Tuesday, August 2, 2011
नया दौर पुराना दौर
मगर एक दौर था जब सबके बाप हुआ करते थे |
ये और बात है कि आज मेरे साथ नहीं कोई |
एक वक्त था ,जब हम कुत्तो के भी साथ हुआ करते थे
मनीष कुमार पाण्डेय
(मेरे कुछ प्रिय मित्रो को समर्पित .......)
Monday, August 1, 2011
अनुभव यारी का

बहुत ही सोचता था मै ज़माने भर के बारे में
पर दिखा दी मुझको ही मेरी औकात यारो ने
रहा गुमशुम बहुत सोचा और ये समझ आया
लगा दू घुमा कर मै भी एक लात सारो को
लगाई लात उनको तो मुझे दिखी मेरी मंजिल
दिखा दी मैंने भी अपनी औकात सारो को
निकल पड़ा हु अपनी मंजिल कि डगर पर अब मै
नहीं कोई सफ़र के साथ यारो में
बुरा मत मानना भाई ये सच्ची बात है बिलकुल
सिखाया है मुझको यही पाठ यारो ने
मनीष ....












