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Thursday, August 18, 2011
सिपाही अख्तियार ने लिखी पुलिस भ्रष्टाचार पर किताब
सिपाही अख्तियार सिंह ने पुलिस में भर्ती के समय कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी की कसम खाई, लेकिन उप्र पुलिस के इस सिपाही ने यह कसम तो ले ली लेकिन तैनाती के बाद हकीकत के पर्दे पर पहला शार्ट देखा तो वर्दी वालों की हकीकत से रूबरू हुए। अख्तियार अपने मकसद से नहीं डिगे। उन्हें 28 साल की नौकरी में कोई पदोन्नति नहीं मिली है। हां, तीन बार बर्खास्तगी के लिए नोटिस जरूर मिल चुके हैं। पुलिस के भ्रष्टाचार पर एक किताब लिख चुके हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सारथी अख्तियार सिंह यूपी पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात है। वह पिछले दो सालों में आगरा बीहड़ के मंसुखपुरा थाने में तैनात हैं। मूल रूप से मैनपुरी के गांव नगला धरम के रहने वाले अख्तियार ने 1 जून 1983 को खाकी पहनी। उसी दिन कसम ले ली कि कुछ गलत नहीं होने देंगे। अख्तियार की असली जंग शाहजहांपुर के परोर थाने से शुरू हुई। थानाध्यक्ष ने शीशम के स्लीपर का ट्रक पकड़ा। इसे अपने घर में उतरवा दिया। मामला संदिग्ध देख उन्होंने इसकी शिकायत एसपी से कर दी। अधीनस्थ कांस्टेबिल के हौसले देख थानेदार ने पहले धमकाया। वह न झुके तो समझौते की कोशिशें शुरू कर दीं। इससे अख्तियार के हौसले बढ़े। उन्हें लगा कि सच्चे शब्दों में इतनी ताकत है कि इसके आगे सारे हथियार फेल हैं।
इसके बाद उन्होंने बदायूं में जो किया दिखाया, वह और भी काबिले तारीफ था। वहां फलों से लदे आम के पेड़ों पर थानेदार की मिलीभगत से आरियां चल रही थीं। अख्तियार ने इसकी शिकायत एसपी तक से की, मगर थानेदार का कुछ नहीं हुआ। खुलेआम चल रहे इस खेल को रोकने के लिए एक दिन अख्तियार डीएम के सामने पेश हो गए। शिकायत पर आम के पेड़ बच गए। परंतु अख्तियार को जो फल मिले वह बहुत खट्टे थे। उन्हें लाइन हाजिर कर दिया गया। सन् 1998 में एक गोपनीय शिकायत पर उनका गोरखपुर जीआरपी में तबादला कर दिया गया। वहां भी उनकी सच्चाई का कारवां रुका नहीं। वहां के गोरखधंधों की खबर लेकर एडीजी के पास पहुंच गए। यहां भी अनुभव विष भरे थे। गोरखधंधा तो नहीं रुका। साथ ही कह दिया गया कि तुम यहां गलत आ गए हो। जिले में जाओ और आगरा भेज दिया गया।
यहां भी कहानी वही हुई। अपनों से लड़ते अख्तियार सिंह की एसएसपी से लेकर दूसरे अधिकारियों ने हौसला अफजाई तो की, मगर तैनाती दी गई जिला अपराध नियंत्रण कक्ष में। एक बार तो एसओ से मोर्चा खुल गया। बाद में उन्हें मनसुखपुरा भेज दिया गया। इस थाने की सच्चाई यह है कि यहां अक्सर सांप और बिच्छू निकलते हैं। बिजली है नहीं और जिला मुख्यालय आने के लिए एक दुर्गम रास्ता तय करना पड़ता है। परंतु इसके बावजूद अख्तियार डिगे नहीं हैं। वह कहते हैं कि जो न्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ रास्ता अख्तियार किया है, वह कभी नहीं छोड़ेंगे।
एक अनशन ने छुड़ाए थे अफसरों के पसीने
अनुशासित महकमे का जवान अख्तियार एक बार तो न्याय की लड़ाई के लिए 18 फरवरी 2003 को कलक्ट्रेट में धरने पर बैठ गया। मांग थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी शिकायत सबूत के बाद भी नहीं सुनीं जाती। या तो न्याय दो या बर्खास्त कर दो। सिपाही के अनशन की खबर ने लखनऊ में बैठे अफसरान को हिला दिया। बाद में अख्तियार की जीत हुई।
56 पन्नों में लिखी खाकी की हकीकत
आठ बार लाइन हाजिर और तीन बार बर्खास्तगी का नोटिस झेल चुके बीए पास अख्तियार सिंह ने वर्ष 2000 में 56 पन्नों की किताब अपराध का उत्थान और पतन में जो खुलासे किए, वह पुलिस के लिए करंट देने से कम नहीं है। इस किताब को लिखने के लिए अख्तियार सिंह ने तत्कालीन जिलाधिकारी से पहले अनुमति भी ली थी।
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