पाकिस्तानी क्रिकेटरों सलमान बट्ट और मोहम्मद आसिफ भले ही अब स्पॉट फिक्सिंग के दोषी करार दिए गए हों, लेकिन ‘भद्रजनों के खेल’ में मैच फिक्सिंग की शुरुआत लगभग 200 साल पहले हो गई थी और तब एक क्रिकेटर पर आजीवन प्रतिबंध भी लगा था।
लंदन के साउथवर्क क्राउन कोर्ट ने मंगलवार को बट्ट और आसिफ को गलत तरीके से राशि स्वीकार करने का षडयंत्र रचने और धोखाधड़ी की साजिश रचने का दोषी पाया। इस साजिश में शामिल तीसरे आरोपी मोहम्मद आमिर के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया गया, क्योंकि उन्होंने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था।
दिलचस्प तथ्य यह है कि क्रिकेट में फिक्सिंग की शुरुआत तब हो गई थी, जबकि टेस्ट क्रिकेट भी नहीं खेला जाता था। सबसे पहले 1817 से 1820 के आसपास इस खेल की अखंडता खतरे में पड़ती नजर आई थी। इसी दौरान विलियम लैंबार्ट नामक बल्लेबाज पर मैच फिक्सिंग के लिए प्रतिबंध लगाया गया था, जिसके बाद वह फिर कभी क्रिकेट नहीं खेल पाए थे। यह वह जमाना था, जबकि सिंगल विकेट क्रिकेट भी खेली जाती थी और तब इस तरह के मैचों पर सट्टा लगाना आसान होता था।
इतिहासविद् डेविड अंडरडाउन ने अपनी किताब ‘स्टार्ट ऑफ प्ले...क्रिकेट एंड कल्चर इन एटीन्थ सेंचुरी इंग्लैंड’ में लिखा है कि असल में सिंगल विकेट क्रिकेट में पूरे 11 खिलाड़ी नहीं होते थे और इसलिए उन्हें फिक्स करना आसान था। अंडरडाउन के अनुसार, ‘लोग हमेशा क्रिकेट पर सट्टा लगाते थे, विशेषकर ड्यूक, राजा और लॉर्ड्स जो देश चलाते थे। लेकिन धोखाधड़ी या किसी हद तक मैच फिक्सिंग के कुछ आरोप भी लगे थे।’
मैच फिक्सिंग के पहले वाकये का जिक्र 1817 में मिलता है। अंडरडाउन के अनुसार उस साल इंग्लैंड और नाटिंघम के बीच खेले गए मैच में कुछ खिलाड़ियों ने जानबूझकर लचर प्रदर्शन किया था। इनमें विलियम लैंबार्ट भी शामिल थे, जिन्हें उस समय का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माना जाता था। नाटिंघम की तरफ से खेलने वाले लैंबार्ट पर आरोप लगा था कि उन्होंने उस मैच में जानबूझकर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।
लंदन के साउथवर्क क्राउन कोर्ट ने मंगलवार को बट्ट और आसिफ को गलत तरीके से राशि स्वीकार करने का षडयंत्र रचने और धोखाधड़ी की साजिश रचने का दोषी पाया। इस साजिश में शामिल तीसरे आरोपी मोहम्मद आमिर के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया गया, क्योंकि उन्होंने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था।
दिलचस्प तथ्य यह है कि क्रिकेट में फिक्सिंग की शुरुआत तब हो गई थी, जबकि टेस्ट क्रिकेट भी नहीं खेला जाता था। सबसे पहले 1817 से 1820 के आसपास इस खेल की अखंडता खतरे में पड़ती नजर आई थी। इसी दौरान विलियम लैंबार्ट नामक बल्लेबाज पर मैच फिक्सिंग के लिए प्रतिबंध लगाया गया था, जिसके बाद वह फिर कभी क्रिकेट नहीं खेल पाए थे। यह वह जमाना था, जबकि सिंगल विकेट क्रिकेट भी खेली जाती थी और तब इस तरह के मैचों पर सट्टा लगाना आसान होता था।
इतिहासविद् डेविड अंडरडाउन ने अपनी किताब ‘स्टार्ट ऑफ प्ले...क्रिकेट एंड कल्चर इन एटीन्थ सेंचुरी इंग्लैंड’ में लिखा है कि असल में सिंगल विकेट क्रिकेट में पूरे 11 खिलाड़ी नहीं होते थे और इसलिए उन्हें फिक्स करना आसान था। अंडरडाउन के अनुसार, ‘लोग हमेशा क्रिकेट पर सट्टा लगाते थे, विशेषकर ड्यूक, राजा और लॉर्ड्स जो देश चलाते थे। लेकिन धोखाधड़ी या किसी हद तक मैच फिक्सिंग के कुछ आरोप भी लगे थे।’
मैच फिक्सिंग के पहले वाकये का जिक्र 1817 में मिलता है। अंडरडाउन के अनुसार उस साल इंग्लैंड और नाटिंघम के बीच खेले गए मैच में कुछ खिलाड़ियों ने जानबूझकर लचर प्रदर्शन किया था। इनमें विलियम लैंबार्ट भी शामिल थे, जिन्हें उस समय का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माना जाता था। नाटिंघम की तरफ से खेलने वाले लैंबार्ट पर आरोप लगा था कि उन्होंने उस मैच में जानबूझकर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।
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