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Wednesday, December 14, 2011

क्षपाई में किये करोड़ों चट



अन्ना के भ्रस्टाचार के खिलाफ  आन्दोलन के बाद  भी भ्रस्टाचारी नहीं सुधरे जिन्होंने शिक्षण सामग्री को भी नहीं छोड़ा  उत्तर प्रदेश में शिक्षा विभाग में एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। आरोप है कि बच्चों को मिलने वाली किताबों को छापने के लिए बगैर टेंडर निकाले एक प्रिंटर से किताबें छपवाई गईं। मामला सामने आने के बाद सब एक-दूसरे को बचाने में जुट गए हैं।इस योजना के अंतर्गत डेढ़ लाख बेसिक-प्राइमरी स्कूलों में लगभग डेढ़ करोड़ की संख्या में हर बच्चे के हिसाब से 26 किताबें मुफ्त बांटी जानी थीं, लेकिन इसी योजना पर हर साल 12 करोड़ से ज्यादा किताबों की छपाई की गई।इस पर भी जो किताबें बच्चों को जुलाई में मिलती थीं, वे मिलीं अक्टूबर में। ऐसा इसलिए क्योंकि टेंडर से पहले ही करोड़ों की किताबें झांसी के प्रिंटर पीतांबरा बुक्स की प्रेस में छापे जाने का आरोप है।करोड़ों की किताबें जब्त की गईं पर अफसर खामोश बैठे रहे। आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पीतांबरा के भुगतान पर रोक लगा दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बेंच ने माना है कि इसमें प्रिंटर और अफसरों की मिलीभगत थी और इसीलिए टेंडर से बहुत पहले प्रिंटर किताबें छाप रहा था। इसीलिए कोर्ट ने रोक लगा दी है, लेकिन आरोप है कि बैकडेट में उसे भुगतान किया जा रहा है।सवाल यह है कि आखिर प्रिंटर को टेंडर से पहले पाठ्यक्रम की सीडी कैसे मिल गई। आरोप यह भी है कि किताबें जब्त करने के बाद प्रिंटर को करोड़ों के और काम दिए गए। महकमे ने माना भी है कि पूरे खेल में अफसर मिले हुए हैं। प्राथमिक शिक्षा मंत्री धर्मराज सैनी ने कहा कि माननीय न्यायालय के आदेश का हर हाल में सम्मान होगा। भुगतान को भी रोक दिया गया है। इसी साल उत्तर प्रदेश सरकार ने घटिया कागज इस्तेमाल करने के लिए 28 प्रिंटरों की भुगतान रोकने के आदेश दिए थे, लेकिन ये आदेश भी अचानक वापस ले लिए गए। ऐसे स्थिति होने के बाद भी प्रदेश सरकार अपना दामन साफ़ बताती है |

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