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Wednesday, December 14, 2011

अम्बिका सोनी के नाम एक पत्रकार का ख़त: शोषण की दुहाई


माननीय.
श्रीमति अंबिका सोनी जी,
( सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार )

मैं यह पत्र आपको इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है. मैं किसके पास जाऊं, अपनी और अपने जैसे हजारों युवाओं की समस्या को लेकर। मैं पेशे से एक पत्रकार हूँ और दिल्ली में ही एक न्यूज चैनल के दफ्तर में काम करता करता हूँ, हालांकि मुझे पता है कि आपसे या सरकार से कुछ छिपा नहीं है. फिर भी मैं अपने जैसे उन युवाओं की समस्याओं से आपको अवगत कराना चाहता हूँ जो न्यूज चैनलों और अखबार के दफ्तरों में हर रोज शोषण का शिकार होते हैं । क्या इस देश में मीडिया के पुराने कानूनों में संसोधन करके कुछ नए कानून नही बनाए जा सकते ?

वर्तमान में मीडिया इंडस्ट्री शोषण का प्रतीक बन चुकी है। निचले स्तर के कर्मचारियों की इतनी बुरी हालत है कि वो बयान नहीं किया जा सकता. यहाँ एक नई नीति बन गई है "कम लोग, कम सैलरी, गधों की तरह काम करो ." आज मीडिया और राजनीति एक दूजे के पूरक बन गए है, राजनीति में जिस तरह परिवारवाद बढ़ते जा रहा है वही हाल मीडिया का हो गया है। यहाँ नौकरी पाने का फंडा बिल्कुल उल्टा हो गया है, ‘आप क्या जानते हो ये कोई नहीं पूछता ‘किसको जानते हो ‘ये पूछा जाता है”. बड़े पदो पर बैठे लोग प्रबंधन के साथ मिलकर मलाई खा रहे हैं और निचले स्तर के कर्मचारियों को सूखी रोटी के लिए तरसा रहे हैं।

सैलरी का आधार ये है कि बड़े अधिकारी अपने सगे - संबंधियों को मनमानी वेतन दिलाते है. चाहे उसे कुछ नहीं आता हो और जिनकी किस्मत अच्छी है उन्हें कैसे भी करके नौकरी तो मिल रही है लेकिन सैलरी में जमीन - आसमान का फर्क हो जाता है। मैं कुछ दिनों पहले एक नए चैनल के दफ्तर मे इंटरव्यू के लिए गया था, वहाँ मुझे जॉब तो मिल रही थी लेकिन सैलरी उतना ही ऑफर किया गया जितना मुझे मिलता है. मुझे प्रबंधन के बजट का हवाला दिया गया जबकि मेरे साथ पास आउट हुआ मेरा मित्र जब एक हफ्ते बाद वहीं पर सिफारिश लेकर गया तो उसे तीन गुना सैलरी ऑफर किया गया. गौरतलब है कि उसे भी उतना ही अनुभव था जितना मुझे है। यहाँ सिर्फ उन्हीं लोगों की नौकरी सुरक्षित है जो किसी सिफारिश से आए हो या जिनको चमचागिरी करने आता हो, बाकियों की तो नौकरी भी हर समय खतरे में रहती है. पता नहीं कब किस बहाने निकाल दिया जाएगा।

नौकरी के लिए लोग 1-1 साल तक मुफ्त में इंटर्नशिप करते हैं फिर भी परिवारवाद की वजह से नौकरी मिलना मुश्किल हो गया है. कई प्रतिभावान लोग एक मौके की तलाश में दफ्तरों के चक्कर काट रहे है। कुक्कुरमुत्ते की तरह उगे मीडिया संस्थानो के लुभावने और फरेबी विज्ञापन युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. लगभग सारे प्राइवेट संस्थान प्लेसमेंट की गारंटी लेकर लाखों की कमाई कर रहे हैं और उनके फर्जीवारे के खिलाफ सरकारी महकमा भी मीडिया के डर से, उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करता.

मीडिया संस्थान अंधाधुंध पैसे बटोर रहे हैं और पत्रकार बनाने का सपना दिखाकर युवाओं से ठगीकर रहे हैं. कुछ बड़े चैनलों और अखबारों को छोड़ कर बाकी सबका यही हाल है। पिछले कुछ सालों में जितने भी नए चैनल या अखबार लॉन्च हुए उनके मालिकों का पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है वे या तो कोई बिल्डर के है या किसी कॉर्पोरेट घराने के जो इस मंशा के साथ न्यूज मीडिया मे कदम रख रहे है कि मीडिया के डर से कोई सरकारी महकमा उनकी काली कमाई पर डंडा ना चला सके और वे मीडिया की आड़ मे काली कमाई करते रहे।

चैनल मालिकों के साथ मिलकर जो बड़े अधिकारी है वो तो मालामाल हो रहे है और प्रबंधन को कम पैसे मे स्टाफ दिलाने की बात करके खुद की सैलरी बढ़वा लेते है। अपने जानने वालों को अच्छी पोस्ट, अच्छी सैलरी दिलाते हैं, बाकी सबको कोल्हू का बैल समझ कर हाँकते रहते हैं। मजबूरी यह है कि हम नौकरी छोड़ नहीं सकते, क्योंकि हालत गंभीर हो चुके हैं जो इस इंडस्ट्री में कई सालों से टिके हुए हैं वे किसी और इंडस्ट्री में जाए कैसे? उनके पास इतना समय है नहीं कि वो किसी और फील्ड में अपने करियर की नई शुरुआत करे, यहाँ सैलरी का कोई पैमाना नहीं है. सालों की मेहनत, समय और पैसा गंवाने के बाद लोग 4000-5000 हजार की नौकरी करने को मजबूर हैं. क्योंकि प्रबंधन को इतने ही पैसे मे कोई दूसरा स्टाफ मिल जाएगा. चैनल के अधिकारी अपनी और अपने चहेतों की सैलरी बढ़वाते हैं बाकियों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। बहुत सारी समस्याएं हैं जिनको मैं पत्र के माध्यम से नहीं बता सकता. आपसे सिर्फ इतनी गुजारिश है कि कुछ बिंदुओं पर विचार किया जाए जैसे।

1.समान अनुभव समान वेतन और वेतन का एक पैमाना तय किया जाए।

2. नौकरी की सुरक्षा को लेकर कोई कानून बने (बिना किसी आधार के किसी को नौकरी से ना निकाला जाए )

3. कर्मचारियो के शिकायत निवारण के लिए सरकार सीधे हस्तक्षेप करे

4. नौकरी देने का आधार तय किया जाए

5. मीडिया संस्थानों पर गलत आश्वशन और दुष्प्रचार करने के लिए उनके ऊपर कार्रवाई किया जाए (नामांकन के समय मार्केट की स्थिति का सही विवरण दिया जाए )

ये पत्र मै अकेले नहीं लिख रहा हूँ , मेरे जैसे हजारो पत्रकारों की यह विनती है कि इस पर तत्काल विचार किया जाए. क्योंकि स्थिति हर दिन भयावह होते जा रही है। इस पत्र की एक-एक कॉपी मै एनबीए और बीईए को भी भेज रहा हूँ और उनसे निवेदन करता हूँ कि वे भी इसपर विचार करें. सिर्फ सिफारिश के बदौलत नौकरी की प्रथा को बंद किया जाए और मीडिया मे बढ़ रहे परिवारवाद को खत्म करने का एक सार्थक प्रयास किया जाए ताकि टैलेंटेड लोगों को मौका मिल सके जिससे मीडिया के गिरते साख को बचाया जा सके और मीडिया कर्मचारी हतोत्साहित होने के बजाए उत्साहित होकर काम कर सके..। हम इस पत्र के जवाब की अपेक्षा आपसे करते है..

सादर ,
एक पत्रकार

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